पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२७१

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२६८ मनुस्मृति भापानुवाद कच्चे मांस के खाने वाले सब जानवरों, ग्राम के रहने वालों न बताये हुये एक खुर वाला तथा गईम और टिट्टी को छोड़ देने ॥१२॥ चिड़िया, परंव, रा, चकवा ग्राम का मुरगा, सारस, वडी गुद्दी वाला जलकाक, पपीहा, नाता, मैना ॥१२॥ "अनुदाखालपागा काटिनखविकिरान् । निमज्जन व मत्स्यागन शो। वल्रमेव च ॥१३॥ वर्चव बलाकां च काका खचरीटकम् । मन्न्यागन्धिड्ययहांश्च मत्म्यानेव च सर्वश. ||१४|" “चोंच से फाड़ कर ग्यान वाले, जिन के पैरों में जाल सा हो (वाज इत्यादि ) चील और जो नावों से फाड़ कर खाते हैं, तथा पानी मे डूब कर जेा मरलियों का खाते है और मौन मारने के स्थान का मास ओर शुष्क माम ॥१३॥ बगुला और वत्तक करेरुवाखचन. ( मीमला ) और मगली के खाने वाले तथा विष्ठामदी मूकर और मम्पूर्ण मत्रलियो का (न खावे ) ||१४||" "यो यम्य मांसमश्नाति स तन्मासादउच्यते । मम्याद समासादस्तम्मान्मत्स्यान्विवर्जयेत् ॥१५॥ पाठीनरोहितावाद्यौ नियुक्ती हव्यकव्ययो.। राजीवान्सिहतुगडांच सशलकांच्चैव सर्वश ॥१६॥" "जो जिस का मांस खाता है. वह उस मांस का खाने वाला कहलाता है। ( मछली सव का मांस खाती है ) इम को जो खावे वह सब का खाने वाला कहलाता है। इस से मछली को न खावे ॥१५|| पाता और रोहू ये ने मछली हत्य कन्य मे ली गई हैं। इस से भक्षण योग्य हैं और राजीव सिहुतुग्दा और सब मोटी खाल वाली मछली (ये भी भक्षण योग्य हैं ) ॥१॥"