म भनय कचगननानां मृगद्विजान् । मसंयपि मधान मवान्नम्वनन्यांनया ॥१७॥ वापि गाया बड़ार्मशास्तथा । भयानञ्चनपन्याहग्नुट्रांकनात ॥१८॥ "प्रकल चरने वाले (मादि) चीर मृग, पनी जो जाने नहीं गय है और जो मन्त्रों में भी कहे गये ही वे पचनाच मय भन्न नदी (जैसे वानराति) || स्वादिष मे, शाम गावा खयाशा व नव वालो नमन । याम अंट का बड़ा योग दात वाले भी 1111 "जन्ना विडवरा च लग गामसुक्कुटम । पलाण्डं च मत्य जग्या पनदिन ॥१५॥ अमन्यमानि पडलम्बा कर नान्तएन चरेन । गतिचान्द्रायणं वापि संपेपवरीदा II "लक और मान कर लान, ग्राम का मुगा पियान शलजम ये ना बुदिपूर्वक जा दिन मना करे, वह नित हावे ॥१५॥ इन काजा बुद्धि पूर्व मना कर ना ( प्रकाशाध्याय में कहे) मान्तपन या यनिचान्द्रारण प्रायश्रिन कर और इन में शंप का मनाए काल तो एक दिन उपयाम कर IPL "मंवन्मयकमपि चल जानम | अन्नातभुक्तशुद्धयर्थ निन्य तु विसंपन ॥२शा बना ब्राह्मण या प्रशन्नामुगानिश । भृत्याना चंब वृत्यर्थमगत्यात्माचरत्पुग ॥२॥" "कभी बिना जान निषिद्ध का मन कर लिया हा इस लिये द्विज १ वर्ष मे १ कृच्छत्रन कर लिया करे और जानबूझ कर