पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२७३

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मनुस्मृति भाषानुवाद किया हो वा विशेप करके यज्ञ और पोष्यवर्ग की तृप्ति के लिये, ब्राह्मण मक्ष्य मृग पक्षियों को मारे क्यों कि पूर्व अगात्य मुनि ने भी किया है ॥२२॥" 'बभूवुहि पुरोहाशा भक्ष्याणां मृगपक्षिणाम । पणेष्वपि योपु ब्रह्मक्षत्रसवेषु च ॥२३॥" यत्किचित्स्नेहसयुक्तं भक्ष्यं भोज्यमगर्हितम् । तत्पर्युपित्तमप्या हविशेष च यद्भवेत् ॥२४॥ 'क्यों कि प्राचीन ऋपियो और ब्राह्मण, क्षत्रियों के यज्ञों में भक्ष्य मृग पक्षियों के पुरोडाश हुवा करते थे। ११ से २३३ तक १३ श्लोक मासाहारियों ने अन्य मांसों की परिशेप से भक्ष्यता सिद्ध करने को मिलाये हैं। इस में कुछ भी संशा नहीं है। १०वें श्लोक मे वासी गडे, खटे खमीरी पदार्थों का वर्णन है। फिर २४ ३ में भी बासी रक्खे हुवे पदार्थों का ही वर्णन है। इस से उस का सम्बन्ध निभ्रम है। लशुन छत्राक पनाग गृधन का निषेध ५ मे कर आये, फिर १९ मे लिखना प्रमा। २२३ में यह जोर लगाना कि यत्रा ब्राह्मणों को कम या पनी वध्य है पहले अगस्त्य मुनि ने भी मारे थे पण धनाना कि यह अगस्त्य की पौराणिक कथा के भी बनने से पीछे किनों के मिलाये हैं । २३ में प्राचीन ऋषियों के भी यज्ञो में भक्ष्य मृग पक्षियों के मांस से पुरोडाश बनाये गये थे। यह कहना सिद्ध करता है कि श्लोक बनाने वाला अपने समय मे मांस को अभक्ष्य प्रसिद्ध जान कर प्राचीन साक्षी देने की कल्पना करता है और यमुवुः" इस परोक्ष भूत क्रिया से जतलाता है कि बात बहुत पुरानी है। जो आँखों से देखा नहीं है। मला स्वायंभुव मनु से पूर्व परोक्ष