पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२७४

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पंचमोऽध्याय भूत कौन लोग ऋषि थे ) ||२३|| जो कुत्र मदन या भाज्य निन्दित नहीं है, यह आसी होने पर भी धृतादियुक्त हो तो भन्नया करले और जो शेप च हवन में प्रयाउमे भी (अथान् पुरोधाश बिना घृतादि लगा भी भक्षण करने )IRIT चिस्थिनमपि स्वायमस्नेहातं द्विजातिभिः । यवगाधर सर्व श्याश्चैव विक्रिया ॥२५॥ "तदुक्तं द्विजातीना भध्यामन्यमशेपनः । मांसायात. प्रवक्ष्यामि विधि भक्षणवर्जन || बहुन काल की भी जी या गेट्ट की वृत्तहित और दूर की (मिगड आदि ) बनी वस्नु बाहाण, तत्रिय वैश्य भक्षण फरलें ॥२॥ यह द्विजानियों का निशेष भल्यामर कहा, इसके उपरान्त मांस के भनए और त्याग की विधि कहंग । (जब निःशेष भन्यामध्य कह चुके और मांग भी प्रनित श्लाकों में यता चुके फिर दुवाग उसका प्रश्नाव प्रमाह और विगई है। अत. आगे के श्लोक भी ४२ तक प्रक्षिप्त है ) ॥२६॥ प्रोनितंभशयेन्मांमधामणाना व काम्यया । यथाविधिनियुक्तन्तु प्राणानामेव चान्यये २ प्राण निमिदं सर्व प्रजापतिर कल्पयत्। स्थावर जद्गमं चैव सर्व प्राणम्य भोजनम् ।।२८॥" 'ब्राह्मणों की कामना मांसभक्षण की हो तो यज्ञ में प्रोक्षण विधिस शुद्ध करकं भक्षणकर और प्राणरक्षा हेतु विधिक नियम से ॥२॥ प्राण का यह मम्पूर्ण अन्न प्रजापति ने बनाया है। ग्यावर और सद्गम सम्पूर्ण प्राण का भोजन है ।।२८॥' 'चराणामन्नमचरा दैष्टिणामप्यन्द्रिण ।