पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२७६

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एनमोऽध्याय २७३ अनापति में निधि का जानने वाला जिनिमाविधिक मास भत्तए नगर प्रगति विना विधि का मांस भवण करना। उमदे मरने पर लिन या गाँस उमन या उसे गाते हैं ॥३३॥ गंगार के लिय जा पशु गारन है. उनका यमा पाप नही हाना असा कि दिगि का राग गौम भगण करने वाले को पार होताशा नियुम्नु राधान्यार यो मांगन नाति मानत्र । मन पशुतां यानि संभवगानगितिम ॥२२॥ अमरना-पान्मनागादियः कदाचन । मनोन ग नानाम्य निधिमाधिन ॥६॥ मधुपर्क या साह में विधि में नियुट हुया जो मानभवण न पदमा के काम पार पश्यानिने जन्म लगाई (म बिगई पाता दगी कि पाने पाले चपन मानना नोएर ओर रहा में सायं ना २१ जन्म ना पायन । माइम में भी माम-मनी थाममाणिरों का प्रपना जान पता ) | मन्त्रों से जिन या संस्कार नहीं हुवा उन पशुधा का विष भी भन म न करे और शारसात बेट की विमि गागारिका में मगन फिय हुवा का मनशकरं (पानुन पEE पर विहिन घर नहीं श्रौत्रसूत्रोंमें जा कुर महभी उन्दी बामगानियोकी लीला')॥३८|| 'मुर्ग गापा भने कुर्याधिष्ट्रपर तथा । नबंध तु गृया पनि उन्कदाचन ।।जा यान्ति पारामाशि नानन्योत मारणम । पृथारमुन्नः प्राप्नाति प्रेन्य जन्मनि जन्मनि ३८|| 'पाने की इच्छा ही हो तो पृतका पशु या पिष्ट ( मैदा) का पशु बना कर यथा विधि पारे परन्नु बिना देना के उद्देश पशु ३५