पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२८

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मनु विश्पनी 810 करायेदार भोग आदि अक्षत हैं, मीन गर्थ श्लेश पात, चार समृद्ध होना, गजा माहा न ले, प्राय छोडे, राजाको गमति, अधर्मी गजा का नाश १६३-१७४ राजा का मेयम, ऋणी का प्रण दिलाना, धरोहर से पुर के यहां गगनी, धरोहर के मुद्धमे १७५-१६६ जो यस्तु का म्यांमी नहीं वह उसे पेच डाले ना उसके पाय भोग पाना मादिविवाद निर्णय छ यिय. मला कन्यादान, नायिओं की दक्षिणा का विवाद निघका लोटाना चान देना १६-२४३ वेतन न देने का लिया निशामद विधादनिर्णय, बेचने हरीदने में नापमाद ने निर्णय, गोस्वामी गेपाल मादि के सिता नाम को जुटी भूमि ग्वेन की याद उस पर चरने से पशुपालादि का विवाद २१४-२४४ सीमा विवाद निणय, मीमानिन्द मक्षा, सीमा कमोशनात्यादि विवाद निर्णय दण्ड आदि नाश्यास्थ्य (गाली) आदि का विवाद निर्णय ६५-99 देगनुपागम्य-अननोनादि दण्ड विवरण (फोज- दारो) के विवाद, रया की हानि आदि, ग्थ से किसी की हानि इत्यादि २७८-३०० चोरी के विवाद का निर्णय, गजा की अघश्य रक्षा करना, भरसक राजा का दोष भिसारियों के ३०१-३४४ सामलिलारमा टिपर गजानन्य मानतायि- वध, परस्त्री गमनादि में गजदण्ड, कन्या दूषण का निग्रह मित्र २वी कामचार में दण्ड भेद ३४५-३७८ भिन्न २ दराज