पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२८५

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मनुस्मृति भाषानुवाद स्पर्श करने वाले १ और ३ गुणा ३ = ९=१० दिन रात में शुद्ध होते है और (मरते समय कण्ठ मे) पानी देने वाले (वा अस्थि- सञ्चयन में चिता पर जल छिड़कने वाले) तीसरे दिन शुद्ध होते हैं।॥६॥ गुराः प्रतस्य शिष्यस्तु परमधं समाचरन् । प्रतहारः समं तत्र दशरात्रेण शुद्धयति ॥६५॥ सामिासतुल्यामर्गमस्रावे विशुद्धयति । रजस्युपरत साध्वी स्नानेन स्त्री रजस्वला ॥६६॥ मृत गुरु की अन्त्येष्टि करता हुआ शिष्य प्रेत भुदा उठाने वालों के साथ दशवें दिन शुद्ध होता है ॥६५॥ जितने मास का गर्भस्राव हो उतन दिन में स्त्री शुद्ध होती है और रजस्वला स्त्री जिस दिनरज निवृत्ति हो, उस दिन स्नान करके शुद्ध होती है, ६६॥ नृणामकृतचूडाना विशुद्ध शिकी स्मृता । निसचडकाना तु त्रिरात्राच्छुद्धिरिष्यते ॥६७॥ जिन पालको का चूडाकम नहीं हुआ, उनके मरने से एक दिन में और जिनका चूदाकम हो गया है उनके मरने से तीन दिन में शुद्धि होती है ।। (६७ वें से आगे ३ श्लोक और भी १ पुस्तकमें प्रक्षिप्त मिलते हैं:- | सस्कारप्रमीतानां वर्णानामावशेषतः । त्रिगत्रात्तु भवेच्छुद्धिः कन्यास्वहोविधीयतो॥१॥ अदन्तजन्मनः सब पाचूडान शिको स्मृता । परम् ॥२॥ त्रिरात्रमावतादेश दशरात्रमतः