पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२८६

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पंचमा ध्याय । परपूर्वासु भार्यासु पुत्रेषु प्रकृतेषु च । मातामहे त्रिरात्रं तु एकाई लम्सपिण्डनः ||३५| सब वणों के बच्चे जो संस्कार से पूर्व मर गये हों उनकी तीन दिन में शुद्धि होती है और कन्याओं की एक दिन मे ॥१॥ जिसके दांत न जमे हो उसकी तत्काल और फिर चूडाकर्म तक आयु वाले की एक रात्रि भर और फिर उपनयन संस्कार आयु वाले की ३ रात्रि और उसके पश्चात् १० रात्रिकी अशुद्धि है ॥२॥ जो स्त्री प्रथम किसी अन्य की थी उनकी और उनमे जन्मे पुत्रो की और नाना की अशुद्धि ३ रात्रि तक असपिण्डगोत्रियों की एक दिन है ।।३।।) ॥६॥ ऊनद्विवापिकं पतं नितधुर्यान्धका बहिः । अलंकृत्य शुचौ भूमावस्थिसंचयनादृते ॥६८|| जिसकी आयु के पूरे दो वर्ष न हुवे हो ऐसे मृत बालक को बान्धव लोग मामादि के बाहर शुद्ध भूमिमे स्वच्छ करके (अस्थिस- चयन विना ही) दवा देवें । (बिना दाह व अन्यि संचयन)||६८11 नास्यकाग्निसंस्कारो न च कादिकक्रिया । अरण्येकाष्टवत्यक्त्वा रुपेयुख्यमय च ६६|| नाऽत्रिवर्षस्य कर्तव्या वान्यवरुदकक्रिया । जातदन्तस्य वा कुर्यनाम्नवापि कृते सति ॥७०|| इस (पूर्वोक्त यन्त्र) का अग्निसंस्कार न कर, इसकी उदक क्रिया (अस्थिसञ्चयनादि) भी न करे, किन्तु जङ्गल में काष्ठवत् दवा देवे और तीन दिन आशाच रक्खे ॥६५॥ अथवा-जिसके तीन वर्ष पूरे न हुवे हो उस बालक की बान्धव उदकक्रिया न करें