पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२९२

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चमाऽध्याय मे पहले दो श्लोक और अन्य दो पुस्तकों में चार श्लाक जो नीचे लिखे हैं, अधिक हैं :- [चत्रविटशद्रदायादाः स्युश्चेविप्रस्य दानवाः । तेपामशीर्च विप्रस्य दशाहाच्छुद्धिरिष्यते ॥१॥ राजन्यवेश्ययोश्चैवं हीनयोनिषु बन्धुषु । स्वमेव शौचं कुर्वीत विशुद्धयर्थमिनि स्थितिः ॥२|| वित्रः शुद्धयेद्दशाहेन जन्महानौ स्वयोनिषु । शभित्रिभिरथैकेन चत्रविद् शूद्रयोनिषु ।।३।। सर्वे चोत्तमवारतु शौचं कुर्यरतन्द्रिताः । तद्वर्ण विधिदृष्टेन स्वं तु शीचं स्वयोनिषु ॥४11] हम ३११३ श्लाको प्रक्षिप्त बता पाये हैं जिसमे ब्राह्मणादि को अपने से नीचे वयों की कन्या लेने का विधान है । यहा इन ४ श्लोकों में उन्हीं नीच विवाह के सम्बन्धियों का मृतक आशौच ववाया जाता है । परन्तु ये श्लोक फेवल पुस्तकों में हैं सबमं नहीं इसलिये यहत स्पष्ट हा है कि ये प्रनितहैं और यहभी निश्चयहोता है कि २, १३ भी ठीकपत्तिया । यदि मनुप्रोक्त होतातो यहांआशौच प्रकरण में उसका श्राशीच विधान भी सब पुस्तकों में होता । यदि क्षत्रिय वैश्य शब्द ब्राह्मण के दायाद बान्धव हों तो उनके आशांच में ब्राह्मण को १० दिन में शुद्धि चाही है ॥१॥ इमी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य को भी अपने से हीन यानि सम्बन्धियों की मृत्यु में अपने वर्णानुनार शुद्धि के लिये शौच करना चाहिये यह नियम है | प्रामण अपन वर्णस्थ मम्बन्धियों के जन्म वा मृत्यु मे १० दिन में क्षत्रिय वर्णम्य नम्बन्धियों के जन्म वा मृत्यु में ६ दिन मे