पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२९३

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२९० मनुस्मृति भाषानुवाद 1 वैश्य सम्बन्धियो के ३ दिन मे और शूद्र सम्बन्धियों के जन्माधि में १ दिन मे शुद्ध होता है ॥३२सब उत्तम वर्ण निरालस्य होकर इस २ वर्णस्थ सम्बन्धियों का उस २ वर्णानुसार और स्ववर्णस्यों का स्ववणोनुसार आशौच माने ||1)||८|| न पर्धयेदधाहानि प्रत्यूहेन्नाग्निष क्रियाः । न च तत्कर्म कुर्वाणः सनाम्योऽध्यशुचिर्भवेत् ॥८॥ मरणाऽशौच के दिन न बढावे और अग्निहोत्रादि क्रिया का विधान नकर उस कर्मकं करतेहुवे सनाभिभी अशुचि नहीं है ।।८४ दिवाकीर्तिमुदक्यांच पतितं सूतिको तथा ! शवं तत्पृष्टिनं चैव स्पृष्ट्वा स्नानेन शुद्धयति || आचम्य प्रयता नित्य जपेदचिदर्शने । सौगन्मन्त्राल्यात्माई पावमानीश्य शक्तितः ।।८६|| चण्डाल, रजम्बला, पतितप्रसूता तथा शव और शवके स्पर्श करने वाले को छने पर स्नानसे शुद्ध होता है ।।८५|| आचमन कर के शुद्ध हुआ मनुष्य चाण्डलादि के अशुचि दर्शन होने पर सौर मन्त्र (उदुत्य जातवेदसम् इत्यादि) और पवमान देवता पाले मन्त्री को शक्ति और उत्साह के अनुसार जपे ॥८६॥ नारंस्पृष्ट्वास्थि सस्नेहं स्नात्वा चिनो विशुद्धयति । आचम्यैवतु निःस्नेहं गामालम्पार्कमीक्ष्य वा ||७|| आदिष्टी नोदकं कुर्यादावतस्य समापनात् । समाप्ते तूदकं कृत्वा त्रिरात्रेणैव शुद्धपति ||८|| मनुष्य की स्नेहयुक्त अस्थि छूने से विप्र स्नान करके शुद्ध है।