पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२९७

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भनुम्मृति भाषानुवाद यदि ब्राह्मण असपिण्ड मृत द्विज का स्नेहसे बन्धु के समान अन्त्येष्टयादि कर्म करे और माता के सम्बन्ध वाले बान्धवों के नाहादि करे तो तीन दिनमे शुद्ध होता है ॥१०॥ जा दाहादि करने वालाविन मृतक मपिन्डीका अन्न ग्यानाही ता १० दिनमें और जा का अन्न न खाता हो और उस घर में भी न रहता हो तो एक दिन में शुद्ध हो जाता है ॥१२॥ अनुगम्मेच्छया प्रजातिमज्ञातिमेव च । स्नात्वा सचैलः स्फुयाग्नि पतं प्राश्यविशुध्यति ॥ १०३।। नविन स्वेषु तिष्ठत्सु मते शूद्रेण नायम् । अस्वा याहुतिः सा स्याद्रमस्पर्शपिता ॥१०४॥ स्वजाति वा अन्य जाति के मुक पीछे जान बूझकर जाने से सचैल स्नात, अग्नि म्पर्श और घृतको खाकर शुद्ध होताहै ॥१३॥ सजातियों के रहते हुये ब्राह्मण के मुद्दे को शूह के दाहार्थ न लिया जावं क्योंकि शूट के स्पर्श से दूषित आहुति (संमार को) सुख देने वाली न होगी ||१०४॥ ज्ञानं वाग्निराहारो मन्मनोवायुपाचनम् । वायुः कर्माकंकालो चशुद्वे कर्त णि देहिनाम् ॥१०५ मन्त्रपामेव शौचानामर्थशांचं परं स्मृतम् । यो सुचिहि स शुचिनं मृट्टारिशुचिः शुचिः ॥१०६।। मनुष्यों को ये ज्ञानादि शुद्ध करने वाले है जान, तप, अग्नि आहार मृतिका, मन, पानी लीपना, वायु यज्ञादि सूर्य और काल (इसी से आशौच और शौच के हेतु समझ लेने चाहिये) ।।१०।। इन सब शौचों में अर्थ शौच (अन्याय करके दूमरे का धन न लेने €