पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/२९९

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२९६ मनुस्मृति भाषानुवाद भस्मनादिभूदा चैत्र शुद्धिरुक्ता मनीषिभिः ॥१११॥ निलं काञ्चनं भाण्डमदिरेष विशुध्यति । अजमश्ममयं चैत्र राजतं चानुपस्कृतम् ॥११२॥ सुवर्णादि और हीरा आदि मणियों और सम्पूर्ण पापाणमय पदार्थों की राख मिट्टी और पानी से मनीपियों ने शुद्धि कही है ॥शा सोने का वर्णन जिसमे उच्छिष्ट न लगा हो और शब्ड मोती आदि जलज और पत्थर के वर्तन तथा चादी जिन पर नकशान होवे केवल जल से शुद्ध होते हैं ।।११२॥ अपामग्नेश्च संयोगाद्धमं रौप्यं च निर्वभौ । तस्मात्योः स्वयोन्यच निर्णको गुणवत्तरः ॥११३|| ताम्रायः कांस्यरेत्याना बपुणः सीसकस्य च । शौचं यथाई कर्त्तव्यं क्षाराम्बोदकवारिभिः ॥११॥ जल और अग्नि के मयोग से चांदी सौना उत्पन्न हुआ है इसलिये इनका शोधन अपनी योनि-पानी और अग्निसे ही बहुत उत्तम है ।।१३।। तांबा लोहा कांसी, पीतल, लाख और सीसे के वर्तनों काखार खट्टे पानी और केवल पानी से जिसमें उचित हो उससे उसका शोधन करे।।११।। द्रवाणां चैन सपां शुद्धिराप्तवनं स्मृतम् । प्रोक्षणं संहतानां च दारवाणां च तक्षणम् ।।११।। मार्जनं यज्ञपात्राणां पाणिना यज्ञकर्मणि । चमसानां ग्रहाणां च शुद्धिः प्रक्षालनेन तु ॥११६॥ द्रवों को पिंघला कर छान लेने से और जमे हुषों की प्रोक्षण