पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मनुस्मृति भाषानुवाद और ऊनी कपड़ो की (शद्धि )रेह वा सुनहरी मिट्टी से और नेपाल के कम्बलों की रीठो से तथा शणादि घास के कपड़ो की वेल से और छानटी वस्त्रोकी श्वेत सरसेसि शुद्धि होती है ।१२०॥ सोमवच्छख शृङ्गाणामस्थिदन्तमयस्य च । शुद्धिविजानता कार्या गोमूत्रेणादकेन वा ॥१२१॥ प्रोक्षणात गकाष्ठं च पलाल चैत्र शुध्यति । मार्जनापाजनैनेश्म पुनः पाकन मृण्मयम् ॥१२॥ शंख, गृङ्गा हड्डी और दांत के पात्रादि की शुद्धि शास्त्र का जानने वाला पुरुष पानी या गोमूत्र से करे या जैसे छालटी की होती है ।।१२१॥ घास और फूस प्रोक्षण से और घर मार्जन तथा लीपने से और मिट्टी का वर्तन पुनः श्राग देने से शुद्ध होवा है ॥१२॥ मौमूत्रैः पुरीषैर्वा ष्ठीवनैः पूयशोणितैः। संस्पृष्टं नैव शुध्येत पुनः पाकेन मृण्मयम् ॥१२३॥ संमार्जनापाजनेन सेकेनान्लेखनेन च । गवां च परिवासेन भूमिः शुध्यति पञ्चभिः ॥१२॥ परन्तु मदिरा, मूत्र मल थूक, राध और रक्त से दूषित हुवा भूत्तिका का पात्र पुन अग्नि में पकाने से भी शुद्ध नहीं होता ॥१२॥ मार्जन, लोपने, छिड़कने, छीलने और गौ के वास करने, इन पांचों से भूमि शुद्ध होती है।।१२४॥ पक्षिजग्धं गला घ्रातमवधूतमवक्षुतम् । क्षितं केशकीटैश्च मृत्प्रक्षेपण शध्यति ॥१२॥