पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३०० मनुस्मृति भाषानुवाद वह और ब्रह्मचारी की मिता, ये सर्वदा पवित्र हैं। यह शास्त्र की मर्यादा है ।।१२।। "स्त्रियो का मुख सर्वदा पवित्र माना जाता है तथा पक्षी फल गिराने मे और बड़े का मुख दोहन के समय, कुत्ते का मुख शिकार पकड़न के समय पवित्र माना जाता है। (यह कामी स्वार्थी और माम मक्षियों का प्रक्षेप धर्मशास्त्र से विरुद्ध त्याज्य है ) ॥१३॥ "श्वमिस्तस्य यन्मास शुचि तम्मनुरब्रवीत्। कन्यादिश्च हत्तस्यान्य श्वगहालायैश्च दस्युभिः ॥१३॥" "कुतोसे मारे हुये का ओ मांस है वह पवित्र है-ऐसा मनु ने कहा है और दूसरे व्यान, चील आदि चण्डाल आदि या दस्युओं के मारे का मांस भी पवित्र है । (यह भी पूर्व श्लोक के समान प्रक्षिप्त है.। मनुरवीन् से भी यही झलकता है। (१३१ वें के आगे ४ पुस्तकों में यह श्लोक अधिक पाया जाता है और इस पर , अन्तिम भाष्यकार रामचन्द्र का भाष्य है अन्यां का नहीं :- [ शुचिरग्निः शुचिर्वायुः प्रवृत्तोहि बहिश्वरः । जलं शुचि विविक्तस्थं पन्थाः सञ्चरणे शुचिः ॥ ] अग्नि शुद्ध है और वायु बाहर बहता हुवा शुद्ध है। एकान्त देश का जल और चलते हुवे मार्ग शुद्ध हैं ) ॥१३॥ ऊर्चनाभेर्यानि खानि तानि मेध्यानि सर्नशः । यान्यधस्तान्पमेध्यानि देहाय मजारभुताः ॥१३२॥ नाभिके ऊपर जो इन्द्रियां हैं वे पवित्र और जो नामि से नीचे है वे अपवित्र हैं और देह से निकले मल अशुद्ध है ।।१३२|| मक्षिका विप्र पश्छाया गौरश्वः सूर्यरश्मयः । ७