पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३०६

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पंचमोऽध्याय गोः पुरीपं च मूत्रं च मेध्यमित्पन्नवीन्मनुः ।।] बकरी, घोड़े मुखसे पवित्र है। गौ पीठ से पवित्र है। ब्राह्मण पांव से पवित्र है और स्त्रिया मत्र और में पवित्र हैं। गौ का मुख अपवित्र है, परन्तु बकरी का मुख पवित्र है और गौ का गोचर और मूत्र पवित्र है। यह मनु ने कहा है)। स्पृशन्ति विन्दवः पादौ य आधामगतः परान् । मौमिकैस्ते समाजेया न तैरप्रयताभवेत् ॥१४२॥ दूसरे के प्राचमन को जल देने वाले के पैरों पर जा बिन्दु (भूमिसे उचट कर) पढ़ते हैं उनका भूमि के जल विन्दु ममान जाने । उनसे अशुद्ध नहीं होता ।।१४।। (इससे आगे भी एक पुस्तक में यह श्लोक अधिक है [दन्तबद्दन्तलग्नेषु जिहास्पर्णेषु चेन्न तु । परिच्युनेषु तत्स्थानानिांगरन्नेव तच्चुचिः।। दांतों में घुसा अन्न दांतों के तुल्य शुद्ध है, परन्तु जीम से न लगता है। और वह अन्न दांतोंसे छूटनेपर निगलनेमे ही शुद्ध है। उच्छिष्णेन तु सम्पृष्टो द्रव्यहस्तः कथञ्चन । अनिधायैवतव्यमाचान्तः शुचितामियात् ॥१४॥ वान्तो विक्तः स्नात्वा तु घृतप्राशनमाचरेत् । आचामेदेवभुक्तान स्नानमैथुनिनः स्मृतम् ।।१४४॥ उच्छिष्ट पुरुप में कोई द्रव्य हम्त में लिये हुवे छ गया हो तो उस द्रव्य को अलग किये बिना ही आचमन करकं शुद्ध हो जाता है ॥१४शा वमन तथा दस्त जिसे हुवा हो वह स्नान करके (थाड़ा)