पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३०७

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३०४ मनुस्मृति भाषानुवाद घून खावे और भोजन करके वमन किया हो तो आचमन करके हो और मैथुन वाला म्लान से शुद्ध होता है ॥१४शा से आगे ४ पुस्तकों में यह स्लोक अधिक है:- [अन्नौ तु मृग शौचं कार्य मूत्रपुरीषवत् । ऋतौ तु गर्भशंकित्वात्स्नान मैथुनिनः स्मृतम् ।। ऋतु से भिन्न काल में मैथुन करने वाले को मिट्टी से शौच करना चाहिये, जैस मल मूत्र करने से आकर करते हैं. परन्तु ऋतु मे गर्भ की शङ्कायुक्त होने से स्नान करना कहा है) ॥१४॥ मुप्ता क्षुत्वा च युक्त्वा च निष्ठीब्योक्त्वा नृतानि च । पीस्वापोऽधेप्यमाणश्च प्राचामेत्प्रयता पिमन् ॥१४॥ एपशौचविधिः कृत्स्नो द्रव्यशुद्धिस्तथैव च । उको वः सर्वत्रर्णानां स्त्रीणां धर्मान्निबोधत ॥१६॥ साकर छींक कर भोजन करके थूक कर, (भूल से) झूठ बोल कर और पानी पीकर और पढ़ने के पूर्व ममय में शुद्ध हुआ भी आचमन करे ॥१४५॥ यह संपूर्ण शौच विधि और सब कमों की द्रव्यशुद्वि तुम से कही । अ स्त्रियों के धर्म सुनो ॥१४॥ वालया वायुवता पा वृद्धयावापि योपिता । नस्वातन्तयेणकर्तव्यं किचित्कार्य गृहेष्वपि ॥१४७१ - धान्ये पितुर्वरो तिष्ठेसाणग्राहस्य यौवने । पुत्राणां भर्तरि प्रतेन भजेत्स्त्रीस्वतन्त्रताम् ॥१४॥ बालक या वृद्ध या युवति स्त्री स्वतन्त्रता से कोई काम घरों मैं भी न करे ॥१४ला वाल्य अवस्थामे पिता के यौवन में पति के