पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३१५

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३१२ मनुस्मृति भाषानुवाद ग्राम का भोजन (दाल चावल पक्वान्नादि) और गार, घोड़ा शय्या इत्यादि को त्याग स्त्री को पुत्री के पास छोड़ या साथ लेकर ही बन को गमन करे ||३|| अग्निहोत्र और उस के पात्र नुव इत्यादि का ग्रहण कर प्रामसे निकल कर इन्द्रियों को स्वाधीन करता हुवा वन में निवास करे ॥४॥ मुन्यन्नैर्विविधैर्मध्यैः शाकमूलफजेन वा । - एताने महायज्ञान निपिद्विधिपूर्वकम् ।।५।। वसीत चर्म चीरं पा सायं स्लायात् प्रगे तथा । जटाश्च विभृयानित्यं श्मश्रुधामनखानि च ॥६॥ नाना प्रकार के मुनियों के पवित्र अन्न वा शाक मल फलों से ही ये महायज्ञ करें ||५|| मृगों का चर्म या वृक्षो के वल्कलो को पहिने । प्रातः सायं दोनो समय स्नान करे। जटा और श्मश्रु तथा नख और रोम सर्वदा धारण करे ।।६।। यन्यस्यात्तोवद्याद् वलिमिचो च शक्तितः । अम्मूलफलमिक्षामिरचयेदाश्रमागतान् |७|| स्वाध्याये नित्ययुक्त: स्याद्दान्तामैत्रः समाहितः । डाना नित्यमनादासा सर्वभूतानुकम्पकः ||८|| (अपने) भोजन में से यथाशक्ति बलि और मिक्षा देवे और आश्रम मे आये हुवो का जल मूल और फल की मिक्षा से सत्कार करे ॥७॥ प्रति दिन वेदाध्ययन करे इन्द्रियो का दमन और सवका उपकार करने वाला तथा मन का स्वाधीन रखने वाला हो और नित्य देता रहे लेवे नहीं । सम्पूर्ण जीवोपर दया करनेवाला हो ।