पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३१७

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मनुस्मृति भाषानुवाद भूमि वा जल में उत्पन्न हुवे शा और पवित्र वृक्षों के पुष्प मूल फलों तथा फों मे अन्न नहेले का भोजन करे ॥१३॥ मद्य, मांस और भूमि के कुकुरमुत्तो और भूतृण (मालवासे प्रसिद्ध है) तथा महोजना और श्लप्मातक फल-लिसौड़ोंको न खावे ॥१४॥ त्यजेद श्ययुजे मासि मुन्यन्न पूर्वसंचितम् जीर्णानि चैत्र बाप.मि गाकमूलफज्ञानि च ॥१५॥ न मालकृटमरनीयादुत्सष्टमपि वेनचित् । न ग्रामजानान्यात ऽ पमूलानि च फलानि च ॥१६॥ आश्विन के महीने में संचय किया हुआ पहला मुन्यन्न और पुगने कपडे तथा वासी शाक मूल फल त्याग देवे ॥१५॥ खेतो के धान्यादि का चाहे किसी न छोड़ भी दिये हो न भोजन करें और ग्राम में होने वाले मूल और फल पीडित हुआ भी न खावे.॥१६॥ अग्निपत्राशना वा स्यात्कालपत्रमुगेत्र वा । अश्मकुट्टो भवेद्वापि दन्तालूखलिकाऽपि वा ॥१७ ॥ सबः प्रमालका वा स्यान्माससंचपिकापिया। पएमासनिचो वा स्थालमानि एव वा ॥१८॥ अग्नि का पका या समय से पके हुये फल ही या पत्थरों से कूटा हुवा या दांतो से चबाया हुवा खावे ॥१७॥ एक बार के भोजनमात्र का संचय करने वाला वा महीने भर का वा छ: महीने का वा वर्ष दिन के निर्वाह योग्य का संचय करने वाला हो ।।१८।। , नक्तं चान्न समश्नीयादिवाया हुत्य शक्तितः । चतुर्थकालिका वा स्यात्स्याद्वाप्पटमकालिका ||१६||