पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३२४

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पष्टाध्याय मासूर्य हि वजन्मार्ग नाऽदृष्टां भूमिमाक्रमेन् । परिभृताभिरदिस्त कार्य कुर्वीत नित्यशः ॥२१॥ सत्यां वाचमहिनां च पदेद नपकारिणीम् । कन्कापेतामध्परुपामध्नृशंसामपैशुनाम् ॥ ॥] गर्मी और जाई ८ मास में मंन्यासी देशाटन करे और नव जीव जन्तुओ पर दया के लिय वर्षा के ४ मास तक एक स्थान में निवास करे ||१|| रात्रि में जब सूर्य न हो, तब मार्ग न चले। भूमि का बिना देखें न चले । अधिक जल से नित्य कार्य करे ॥२॥ सर हिमारहिन हमरे की हानि न करने वाली और कठोरता, कोष, निमा और चुगलीसे रहित वाणी योले ) ॥४५|| दृष्टिपूतं न्यसेत्साह बम्बपूतं जलं पिन् । सस्पपूतो बदेवाचं मनःपूर्व समावान् ॥५६॥ दृष्टि में शावित (मार्ग में) र (देखकर चले ) और वस्त्र से छान कर) पवित्र हुवा जल पीर और मत्य में पवित्र वाणी का बोले और मन से पवित्र आचरण का करें ।।४।। अतिवादास्तितिक्षेत नाबमन्येन कञ्चन । न चे देहमाश्रित्य और कुर्वीत केनचिन् ॥४७॥ ऋ घ्यन्तं न प्रतिक ध्येदाक्रप्टः कुशलं वदेत् । सप्तद्वाराऽनकीणों च न शावमऽनतां वदेत् ।।४।। दूसरों के बुरे कहने का सहन करे किसी का अपमान न करें और इस देह का आनय कर किमी के साथ बैर न करें ॥४॥ क्रोध करते पर बदले में कोच न करे ओर निन्जा करने वाल में