पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३३५

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मनुस्मृति भाषानुवाद एवं संन्यास कर्माणि म्बकार्यपरमालम्पृहः । संन्यासेनापहत्यैनः प्राप्नोति परमां गतिम्।।६।। इस प्रकार कमों को छोड़कर अपने कार्य (आत्म साक्षात्कार) मे तत्पर हुवा निःस्पृह मन्यान में पापको दूर करके परम गति को प्राप्त होता है | एप वाभिहिनो धर्मो बामणस्य चतुर्विधः । पुण्योऽतयाला प्रत्य राज्ञां धर्म निवोधत । 8७॥ (ह ऋषियों !) तुममे यह ब्रामण का चार प्रकार का धर्म बो परलोक में पुण्य तथा प्रा फल इन वाला है कहा । अब गजाओं का धर्म मुना ॥१०॥ इति मानवे धर्मशास्त्र (भगुप्रोक्तायां संहितायां) पष्ठाऽध्यायः ॥६॥ इति श्री तुलसीरामस्वामिवि ने मनुस्मृतिभागनुवादे पागऽध्याय. हा