पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३३७

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258 1 मनुस्मृति भाषानुवाद यम्मादेषां सुरेन्द्राणां मात्राभ्या निर्मितो नृपः । . नस्मादभिमवन्येप सर्वभूतानि तेत्रमा ॥५॥ तपत्यादित्यवच्चयां चनपि च मनामि च । न चैन मुवि शक्नोति कश्चिदप्पभित्रीनितुम्।।६।। क्योकि देवन्द्रों की मानायो में राजा बनाया गया है इसलिये यह (गना) नेज में नव प्राणियों को दबाता है । (अब दो श्लाकों में यह बताते है कि राजा में कैसे उक्त आठ देवों का प्रभाव रहता है) राजा अपने तेज से इन (दम्बने बालों) की आंखों और मनों का मर्य मा अमन्य होता है और पृथिवी में काई इस (गजा) के मामन होकर नहीं देख सकता (इससे सूर्याश कहा। इसी प्रकार- सोऽग्निर्भवति वायुश्च सादुक सामः स धर्मराट् । म कुवर. म वरुण' स महेन्द्र प्रभावतः ||७|| बालोऽपि नावमन्तव्यो मनुष्य इति भूमिपः । महती देवना ह्यपा नररूपेण तिष्ठति ||८|| 1 बह राजा प्रभाव में अग्नि बायु सूर्य चन, यम कुवेर वरुण और इन्न है |७|| मनुष्य जानकर बालक राजा भी अपमान करने योग्य नहीं है, क्योंकि यह एक बड़ा देवता मनुष्य रूप से स्थित है ।।८॥ एकमत्र दहत्यग्निर्नर दुरुपसर्पिणम् । कुतं दहति राजाऽग्निः स पशुद्रव्यसञ्चयम् 1180 कार्य सोवेच्य शक्ति च देशकाली च वचतः !