पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३३९

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मनुस्मृति भाषानुवाद उस धर्म (कानून) को न विचलावे (न तोड़े) ॥१३शा उस (राजा) के लिये प्राणिमात्र के रक्षक, आत्मा से उत्पन्न ब्रह्मतंज से धने दण्ड धर्म का ईश्वर ने पूर्व बनाया है ॥१४॥ तस्य सर्वाणि भूतानि स्थावराणि चराणि च । भयादोगाय कल्पन्ते स्वधर्मान चलन्ति च ॥१५॥ . तं देशकालौ शक्तिं च विद्यां चावेक्ष्य तत्वतः । यथाईतः संप्रणयेवरेष्वन्यायवर्तिषु ॥१६॥ उस (दण्ड ) के भय से सम्पूर्ण स्थावर और जङ्गम भागको प्राप्त होते हैं और अपने धर्म से नहीं विचलते ॥१५॥ देश काल शक्ति और विद्या के तत्व को शास्त्रानुसार विचार कर अपराधी मनुष्यों को यथायोग्य उम दण्ड को देवे ॥१६॥ स राजा पुरुषोदण्डः स नेता शासिता च सः। चतुर्णामाश्रमाणां च धर्मस्य प्रतिभूः स्मृतः ॥१७॥ दण्डः शास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एवाभिरचति । दण्डः सुप्तेषु जागर्ति दण्डं धर्म विधाः ॥१८॥ वह दण्ड ही राजा है वही पुरुष है और यही नेता तथा शासिता और चारो आममो के कर्म का प्रतिमू (जामिन ) है ॥१७॥ दण्ड सम्पूर्ण प्रजा का शासन करता है। दण्ड ही रक्षा करता है । सब के साते हुवे दण्ड ही जगाता है (उसी के डर से चोर चोरी नहीकरते) विद्वान् लेाग दण्डको धर्म जानते हैं ।।१८।। समीच्य स घत- सम्यक् सर्वा रज्जयति प्रजाः। 'असमीक्ष्य प्रणीतस्तु विनाशयति सर्वतः ॥१६॥