पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३४

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। मनु विषयसूची शूद्र की उस सेवा में प्रशंसा, धर्मात्मा शूटों की प्रशंसा, उसता. शूद्र को धन सञ्चय का निषेध, वर्ण धर्म का उपसंहार, प्रायश्चिच की प्रतिमा १२-१३१ एकादशाऽध्याय में- नव ६ प्रकार के स्नातक धर्ममिक्षुक हैं गजा को इन का मत्कार करना, मत्कार की प्रशंमा, सोमयागका भधिकारी कौन है, कुटुम्यादि का पोपण न करके यमादि पुण्य की निन्दा, या रुका हो तो यजमान ब्राह्मण को वैश्य मे गला धन दिलावे, शूठ से या अन्यों से भी सहायता गना 1-18 देवधन और अनुरधन ब्राह्मण को गजा क्षुन्पीड़ा से बचावे यशार्थ शूद्र से धन मांगने का दुष्फल, देव धनादि की निन्ना अनापद में आपकाल की निन्दा २०-३० ग्राह्मण को कोई मतावे नो यथाशकि ब्रह्माल से ही रोके राजा से निवेदन न करे, क्षत्रिय और वैश्य शूद्र किन उपायों से मापन निवारण करें प्राणको श्रेष्टना के कारण कन्यादि होता नहीं हो सकने दक्षिणा न देने पर अनाहिनाग्निपना, दक्षिणा का संकोच हो तो अन्य पुण्य करे, यज्ञ का नाम न ले, अग्नि के अपवेध, विहितकर्म का त्याग निपिद्ध का अनुष्ठान करनेसे प्रायश्चित्त, बिना जाने वा जाने कर्म के भी प्रायश्चित्त प्रायश्चित्त पर विचार, प्रायश्चित्त न होने तक अलगरहना, पूर्वजन्म वा इस जन्म के प्रायश्चित्तियों