पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सममाऽध्याय चुगली; साहस, द्रोह, ईयां दूसरे के गुणों में दोप लगाना, द्रव्य हरण, गाली देना और कठोरता, ये आठ क्रोध से उपन्न व्यसन हैं ॥४॥ औरप्येतयोमल में सर्वे काया विदुः । तं यत्नेन जयेल्नेभ तज्जावेतावुभौ गणो ॥४६// पानमक्षाः स्त्रियश्चैत्र मुगया च यथाक्रमस् । एतत्कष्टवर विद्याश्चतुष्कं कामजे गणे ॥५०॥ जिस को सम्पूर्ण विद्वान इन दोनों गण का कारण बताते हैं, उम लाभ को चलखे छोड़ देवे । उसीसे ये दोनों कारण उत्पन्न हैं ॥४९॥ काम से उत्पन्न हुवे गण में मद्यसन, जुवा खेलना, स्त्री प्रसङ्ग और शिकार, इस चौकड़े का बहुत कष्ट जाने ॥५०॥ दएडस्य पातनं चैत्र वाक्यारुप्यार्थपणे । क्रोधपि गणे विद्याकप्टमेतत्रिकं सदा ॥१॥ सप्तक्स्यास्य वर्गस्य सर्वत्रंबानुपङ्गिणः। पूर्व 'पूर्व गुरुतरं विद्याद्वयसनमात्मवान् ॥५२॥ क्रोध से उत्पन्न हुवे गण में कठोर वचन कहना, दण्डे से मारना और द्रव्यका हरण करना, इस त्रिक (३) को सदैव अति कष्ट जाने ।।११॥ ये जा सव में साथ लगे, सात व्यसन हैं, इन में पहिले २ (सन) को ज्ञानी पुरुप भारी (व्यसन) जाने ।।२।। व्यसनस्य च मत्याच व्यसनं कष्टमुच्यते । व्यसन्यधाऽधोबजति स्वर्यात्यव्यसनीमतः ॥५३॥ मौलाञ्छास्त्रविदः शुल्लिब्धलवान कुलोद्गतान ।