पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३४७

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मनुस्मृति भाषानुवाद सचिवान्सप्त चाप्टौचा प्रकुर्वीत परीक्षितान् ॥५४|| ज्यसन और मृत्यु (दोनों नाश करने वाले हैं) में मृत्यु से व्यसन कठिन है। क्यो कि व्यसनी दिन दिन अवनति में जाता है और निर्व्यसनी मर कर स्वर्ग का जावा है ॥५३॥ मूल से नौकरी किये हुवे, शास्त्र के जानने वाले, शूरवीर, अच्छा निशाना लगाने वाले, अच्छे कुल के और परीक्षात्तीर्ण ७ या ८ मन्त्री रक्खे ||२४॥ अपि यत्सुकरं कर्म तदप्येकेन दुष्करम् । विशेषताऽसहायेन किन्तु राज्य महोदयम् ॥५५॥ तः साधे चिन्तयेषित्यं सामान्य सन्धिविग्रहम् । स्थान समुदयं गुप्ति लब्धप्रशमनानि च ॥५६॥ जब कि सुगम काम भी एक से होना कठिन है तो विशेष कर बड़े फल का देने वाला राज्यसम्बन्धी काम अकेला कैसे कर सकता है ॥५५॥ इस लिये उन (मन्त्रियो) के साथ साधारण सन्धि विग्रह की और (दण्ड, कोश. पुर: राष्ट्र - चतुर्विध) स्थान की और द्रव्य धान्यादि की उन्नति और सब की रक्षा और जो प्राप्त है, उस की शान्ति का विचार करे ॥५६॥ तेषां स्वं स्वमभिप्रायमुपलभ्य पृथक् पृथक् । समस्तानां च कार्येषु विदध्याद्धितमात्मनः ॥५७|| सर्वेषां तु विशिष्टेन ब्राह्मणेन विपश्चिता । मन्त्रयेत्परमं मन्त्र राजा पाइगुण्यसंयुतम् ॥५८|| उन मन्त्रियों के अलग २ और सब के मिले अभिप्राय