पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३४८

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सतमाऽध्याय (अलग अलग राय और मिली हुई राय) को जान कर कार्यों में अपना हित करे ।।१७। उन सब (मन्त्रियों) में अधिक धर्मात्मा और बुद्धिमान् प्रामण (मन्त्री) के साथ राजा पड्गुणयुक्त परम मन्त्र (सलाइ ) करा नित्यं चस्मिन्समाश्वस्तः सर्वकार्याणि निक्षिपेत् । तेन सार्धं विनिश्चित्य ततः कर्मसमारभेत् ॥५६॥ 'अन्यानपि प्रकुचीत शुचीन्प्राजानवस्थितान् । सम्यगर्थसमाहर्त नमात्यान्मुपरीचितान् ॥६॥ उस (नामा मन्त्री) मे अन्धा विश्वास करता हुआ सब काम उन को सौप और जो करना हो, उस के साथ निश्चय करक तब उस काम को करे ।।५९॥ अन्य भी पवित्र बुद्धिमान् परीक्षित तथा व्यकं उपार्जनको युक्ति जानने वालोमा मन्त्री बनावे ।।६।। निर्गतास्ययावद्भिरिति कर्त्तव्यतानृभिः । तावते तन्द्रितान्दक्षान् अकुर्वीत विचमणान् ॥६॥ तेपामर्थे नियुञ्जीत शुरन्दनान कुलोद्गतान् । शुचीनाकरकर्माने मीसनन्ननिवेशने ॥६॥ इस (राजा) का जितने मनुष्यों से पूरा काम निकले उतने आलस्परहित चनुर बुद्धिमानों को (मन्त्री) वनाचे शा उनमे शूर चतुर कुलीन मन्त्रियो को धन के स्थान में और अर्थ शुचियों को रनों की खानि खोदवाने में तथा डरपोकों को महलों के भीतर जाने थाने में नियुक्त करे ।।शा दूत चैत्र प्रकुर्वीत सर्मशास्त्रविशारदम् । । }