पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३५०

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सप्तमाऽध्याय कोशद्धि के लिये सन्धि और विग्रह के समय को जानने वाले समर्थ, समय पड़े को मेल सकने वाले, शत्रुओ से न मिल जाने योग्य, धर्म अर्थ काम से शुद्ध, सव शास्त्रो के ज्ञाता, कुलीन पुष्कलजीविका वाले और चतुर पुरुषो के इकट्ठा करने का उद्योग किया करे। आय व्यय मे चतुर हसाव के पक्कं, निर्लोम, धर्म में श्रद्धालु और कार्यों का वात्पर्य समझने वालों को नियुक्त करे। जो काम में अतिकुशल, अच्छा लिखना जानने वाले भीड़ पड़ी को झेलने वाले, सबके विश्वासपात्र, सच्चे, सब कामोमे निश्चित और स्वामी पर श्राशा न रखने वाले (सन्तुष्ट), समय और प्रसङ्ग (मौके) के जानने वाले हो । कार्य, काम और वरोहर मे सच्चे, घाहर भीतर के भेदी (मन्त्री) लागो को ममीपी कामो और गृह की रक्षात्रो में नियुक्त करे) ॥३४॥ अमात्ये दण्डवायत्तो दर बैनयिकी क्रिया । नृपतौ कोशराष्ट्र च दुते सन्धिविपर्ययौ ॥६५॥ दूत एव हि संघो मिनत्येव च संहतान् । इतस्तत्कुरुने कर्म भिद्यन्ते येन मानवाः ॥६६॥ मन्त्री के आवीन दण्ड और दण्डके आधीन सुशिक्षा और राजा के आधीन देश तथा खजाना और दूत के भावीन मेल वा विगाड़ है ॥६५॥ क्योंकि दूत ही मेल कराता है और दूत ही मिने हुवों का फाड़ता है। दूत वह काम करता है जिससे मनुष्यों में भेद हो जाता है । (५ पुस्तकों मे-मानवाचा धवा पाठ है)।६६। स विवादस्य * कत्लेषु निगावचेष्टितैः । आजारमिङ्गित चेष्टा भूतेषु च ।चकीर्पितम् ॥६७। इस श्लोक मे राजदूत का कर्तव्य बताया गया है। अ -