पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३४. मनुस्मृति मापानुवाद (स.) वह दूत (अस्य) इस राजा के ( कृत्येषु ) असन्तुष्ट विरुद्ध लोगो मे (निगृढेजितष्टितैः) छिप इङ्गित इशारो और चेष्टाओं से (आकारम) उनके आकार - सूरत शकल (इङ्गितम्) इशारे और (ग्राम) काम वा हरकत का (विद्यात्) जानने का यत्न करे (च) और (भृत्येष) भरण पोपण योग्य पुरुषोमे (चिकीर्पितम्) क्या करना चाहते हैं, उसको जाने। (इसमे जो कृत्य शब्द है वह राजनैतिक योगदि शब्द है जिसका विवरण अमरकाप तृतीय काण्ड, नानार्थवर्ग ३ श्लोक १५८ में और उसी की अमरविक टीका में इस प्रकार है कि- कृत्या क्रियादेवतयास्त्रिमेये धनादिमिः॥ (अमरकोप ३।३१५८) "धनस्त्रीभूम्यादिभिर्भेदनीया या परराष्ट्रगतपुरुपादिस्तत्र कृत्याशब्दोवाच्यलिङ्गः" टीका ॥ पराये -शत्र के राज्य मे जो कोई धनके स्त्री के वा पृथिवी आदि के लालच से तोड़ने (अपने अनुकूल कर लेने) योग्य पुरुष - इत्यादि है, उसका "कृत्य" कहते हैं और उसका वाच्य के समान लिङ्ग होता है। स्त्री-कृत्या पुरुष कृत्य नपुंसक कृत्यम् ॥ ये "कृत्य" ४ प्रकार के होते हैं । १-क्रुद्धकृत्य २-लुब्धकृत्य, भीतकृय और ४-श्रवमानितकृत्य । यथा क्रु छकुन्धमीजालमानिताः परेपां कृत्याः ॥ कौटिल्यसूत्र जो शत्रराज्य पर कोथ रखने हैं वे 'ऋद्धकृत्य जो लोभी हैं वे 'लुब्ध कृत्य' ।जो डरेहुवे हैं वे "भीतकृत्य और जो शत्रु राजा से अपमान किये गये हैं वे "अवमानितकृत्य" कहाते हैं। इस