पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३५२

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सप्तमाऽध्याय श्लोक में राजदूत के कामों में एक यह काम भी बताया गया है कि वह शत्रुराज्यों में विपी इशित चेष्ठाओं से गुप्त रूप से शत्रुराज्य से नाराज वेदिल असन्तुष्ट ( Mal-content ) पुरुषों के आकार इक्षित और चेष्टाओ का भेद लेवे ॥ परन्तु मेधातिथि जैसे विद्वान टीकाकार भी "कृत्येषु-कार्येषु" लिखकर मूल कर गये। कुल्लूकभट्ट ने भी भूल में कृत्य का अर्थ 'कत्तव्य" ही लिख दिया। राघवानन्द भी भूल कर "कृत्य का अर्थ "कुर्तुमिष्ट कर गये। रामचन्द्र टीकाकार भी "कर्तव्य कार्य लिख कर भूल में हो रहे। हां, सर्वत्र नारायण टीकाकार का ध्यान "कृत्य" शब्द के योगड अपर पहुँचा उन्होंने कृत्येषु लुब्धभीतावमानित अर्थ लिखा क्या नन्दन टीकाकार ने भी "कृत्येषु - स्वराज्ञा भेद्येषु पर- पक्षस्थेयु पुरुषेयु" लिखकर राजनीतिज्ञान का परिचय दिया है। नवीन काल के पुस्तक "मुभराक्षस' में भी 'कृत्य" शब्द योगरूड़ प्रयु, हुवा है । यथा- कृत-कृत्यतामापादिताश्चन्द्रगुप्तसहोत्यायिनो भद्रभटप्रभृनयः प्रधानपुंरुपाः ॥ मुद्राराक्षस अङ्क १ पृ०३२/३३ तथा उसी की टीका में लिखा है कि- स्त्रीमधमगयाशीलावित्यादि तृतीयाङ्क बन्यमा- समुत्पाय इतो निःसार्य मलयकेतुना सह संधाय कृत- कृत्यताम् एते वयं देवकार्ये वहितास्म इत्येवंरूपाम् ।। इत्यादि स्थलो पर "कृत्य शब्द राजनैतिक योगरूढ़ पाया