पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३५४

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सम्माऽध्याय ३५१ और पहाडी- । सब दुर्गों मे पहाड़ी दुर्ग मोड है। इसलिये सा प्रश्नो गे उसका आश्रय कर क्योकि इस में सब मे अधिक गुण हैं ॥७॥ (इन छ: प्रकार के दुर्गों से छः प्रकार के प्राणी अपने को बचा लेने हैं जैना कि-)इनमे से पहिले ३ दुर्गों में क्रम से धनुदुर्ग मे मृग महीदुर्ग में मूसे आदि, जल दुर्ग में अासर-चलचर । अगले ३ में से वृतदुर्ग में वानर, नदुर्गमे साधारण मनुष्य 'दुर्गम पर्वतवासी देवजाति रहते (और अपनी रक्षा करते हैं।७२|| यथा दुर्गाश्रितानेताओपहिंसन्ति शत्रवः । तयारया न हिंसन्ति नृपं दुर्गसमाश्रितम् ॥७३ । । एका शतं योधयति प्राकारस्थो धनुर्धरः । शतं दशसहस्राणि तस्माद् दुर्ग विधीयते ॥७॥ जैसे इन दुर्गवामियों को शत्रु पीड़ा नहीं दे सकने वैसे ही दुर्ग के आश्रय करने वाले राजा को शत्र नहीं मार सकते ||७३ किले के भीतर रहने वाला एक धनुर्धर सौ के माय ल ड सकता है और सौ दश हजार के साथ लड़ सकते हैं. इसलिये मिला बनाया जाता है । (७४ से आगे २ पुस्तकों में यह श्लोक अधिक है- मन्दरस्यापि शिखरं निर्मनुष्यं न शिष्यते । मनुष्यदुर्ग दुर्गाणां मनुः स्वायम्भुवोत्रवीत् ।। • स्वायंभुव मनु ने कहा है कि दुगों में दुर्ग मनुष्यो का दुर्ग है क्योंकि मन्दराचल (पर्वत) का शिखर भो मनुष्यों से रहित होता को शत्र उसे शेष न छोड़ते) || - तत्पादायुधसम्पन्न धनधान्धेन वाहनैः । बामणैः शिल्पिभिर्यन्त्रैर्यवनोदकेन च ॥५॥ is 2

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