पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३५६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मसमाऽध्याय ३५३ राजा नाना प्रकार के बहुत दक्षिण चाले (अश्वमेवादि) यज्ञ करे और ब्राह्मणों को भोग और सुवर्ण वस्त्रादि धन धर्मार्थ देवे || राज्य से प्रामाणिको द्वारा वार्षिक बलि (मालगुजारी) बगहावे और लोक में शास्त्रानुकूल चलने में तत्पर हो । प्रजा में पिता के समान गर्ने । अध्यक्षान्विविधान्कुर्यात्तत्र तत्र विपश्चितः । तैव्यं सर्वाम्यवेहेरन्नृणां कार्याणि कुर्गताम् ।।८१॥ श्रावृत्तानां गुरुकुलाद्विप्राणां पूजका भवेत् । नपाणामक्षयोरप निधि झोभिधीयते ॥२॥ नाना प्रकार के कामो को देखने वाले अध्यक्ष (अफसर) उन उन कामों में नियत करे वि राजाके सब काम करने वालों के नाम को देखें ।।८।। गुरुकुल से प्रार्थ हुये प्रामणो का (चन वान्यो से) पूजन किया करे। राजाओ की यह ब्राह्मनिधि अक्षय कही है (अर्थान् देने से कमी नही होती) 11 न सेना.न चामित्राहरन्ति न च नश्यति । तरमादाना निवासव्यो ब्राह्मणेष्वक्षयानिधिः ॥ न स्कन्दत न व्यथते न विनश्यति कहिचिन् । बोटिग्निहोत्रेभ्यो नामशस्त्र मुख हुनम् ||४|| उस (गा दिये हुवे) निधि का चार नहीं चुरा सकते और गा नष्ट नकिर माने इमलिये राजा बामणो मे अक्षय निधि जमा करान मे जावन किया जाता है वह कभी गिजा की सब जाता है और कभी नष्ट होजाता है परन्तु नायक मुबी जाइन किया जाता है उसे ये दाप नही होतं । निक्षत्रों से उक्त नागरणका देना है |cil