पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३६०

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सामाऽध्याय ३५७ स्थान हस्तिन छत्रं धनं धान्यं पशन स्त्रियः । सर्व द्रव्याणि कुष्यं च योगज्जयति तस्य तन् ६६ पीछे हट के मरे का जो कुछ परलोक के लिय उपार्जन किया हुआ सुचत है यह सम्पूर्ण म्बामी लेलेता है ॥१५॥ रथ घोडे, हाथी, छत्र, धन धान्य (वल आदि) पशु स्त्रियों और सब इच्या घृत तैलादि, (इन में से) जो जिस को जीते, वह उमका है ॥९॥ राजय दधुरुद्वारमित्येपा बैंत्रिकी श्रुतिः । राना च सर्व वाधेभ्यो दातव्यमपृथग्जितम् ॥१७॥ (लूट में से ) उत्तम धन और वाहनादि राजा को देवे, यह वेदों से सुना है । साथ मिल कर जीती वस्तु, विभाग पूर्वक राजा सब बातों को दे दे । (९४ वें से आगे एक पुस्तक में यह श्लोक अधिक है :- [मृरोमो विमान्न का महगे भवेत् । नाममात्रेण तुप्पेत छत्रेण च महीपतिः ॥] (राजा) नौकरोंका धन यांट दे ला ही मन न लेले । क्यों कि राजाका वा छत्र और नाम मात्रसे प्रसन्न होना चाहिये )।११ एषोऽनुषस्कृतः प्रोक्तो यात्रधर्मः सनातनः । अम्माद्धर्मान व्यवेत क्षत्रियोजन ग्णे रिन । यह मनातन अनुपाचन - अनिन्दित योद्धाओं का धर्म कहा। रण में शत्रुओं को मारता हुआ क्षत्रिय इस धर्म न छाडे । • अलब्धं चैव लिन लब्धं रक्षत्प्रयत्नतः । रक्षितं वर्धयेच्चैव वृद्ध पात्रेषु निक्षिपेत् IEEl