पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मनुस्मृति भापानुवाद बेचना खरीदना और रास्ते के खर्च, रचादि के खर्च और उन के निर्वाह को देखकर धनियों से कर दिवावे ॥१२॥ कामा के करने वाले और राजा दानों को फल अच्छा रहे, ऐसा विचारकर सदा राज्य में कर (टैक्स) लगावे ॥१२॥ यथाल्पाल्पमदन्त्याय वार्या कोवत्सपट्पदाः । तथाल्पाल्पा ग्रहीतव्यो राष्ट्राद्वाज्ञाब्दिकः करः ॥१२६|| पंचाशदाग आदेयो राज्ञा पशुहिरण्ययोः । धान्यानामष्टम भागः षष्ठो द्वादश एव वा ॥१३०॥ जैसे जोक, पछड़ा और भौंरा धीरे २ अपनी खूराक को स्त्रींचते हैं वैसे राजा भी थोड़ा २ करके राष्ट्र से वार्षिक कर प्रहा करे (अर्थात् थोडा कर लेवे उजाड़ नदे) ॥१२९॥ पशु और सुवर्ण के लाभ का पचासवां भाग और धान्य का आठवां वा छटा वा धारहवां भाग (पैदावारके श्रम को देखकर) राजा प्रहणकरे ।१३० आददीताथ षड्भाग द्रुमांसमधुसर्पिपाम् । गन्धौषधिरसानां च पुष्पमूलफलस्य च ॥१३१॥ पत्रशाकणानां च चर्मणां पैदलस्य च । मृण्मयानां च माण्डानां सर्वस्यामरमयस्य च ॥१३२।। वृक्ष, मांस. मधु घृत गन्ध औपधि रस पुष्प, मूल, फल और ॥१३शा पत्र शाक, तण, चर्म और मिट्टी वा पत्थर की चीजों की आमदनी का छटा भाग ले दिा पुस्तको में दमासनभाणां पाठ है) ॥१३॥ प्रियमाणोध्याददीत न राजा श्रोत्रियात्करम् । न च क्षुधाऽस्य ससीदेच्छ्रोत्रियो विषयेवसन् ॥१३॥