पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३६८

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सममाऽध्याय ३६१ यस्य गज़स्तु विषये श्रोत्रियः सीदति चुदा । तस्यापि तत्वुधा राष्ट्रमचिरेणेव सीदति ॥१३४॥ मरता हुआ भी राजा श्रोत्रिय से प्रहण न करे और इसके राज्य में रहना हुआ श्रोनि र हवा से पीडित न हो ||१३३॥ जिम राजा फे राज्य में श्रोत्रिय (वेदपाठी) हवा से पीडित होता है उस को चबा से उन राजा का राज्य भी थोड़े ही दिनों में बैठ जाता है ॥१३४॥ श्रुतचे विदित्वास्य वृत्ति धम्या प्रकल्पयेत् । संस्खेत्सर्वतश्चैनं पिता पुत्रमिनौरसम् ।।१३५।। संरक्ष्यमाणो राज्ञाऽयं कुरुते धर्ममन्वहम् । तेनायुर्वधते राजो द्रविणं राष्ट्रमेव च ।।१३६॥ राजा इनाम वेदाध्ययन पूर्वक कर्मानुरात जान कर धर्मयुक्त जीविका नियत कर देवे और सब प्रकार इमकी रक्षा करे । जैसे पिता औरम पुत्र की रक्षा करता है) ॥१३५।। क्योकि राजा से रक्षा किया हुआ यह (श्रोत्रिय) नित्य धर्म करता है उस पुण्य से राजा की आयु, धन और राज्य बढता है ।।१३।। यत्किचिदपि वर्षस्य दापयेत्करसंजितम् । व्यवहारेण जीवन्तं राजा राष्ट्र पृथग्जनम् ॥१३७॥ कारुकालिनश्चर शूद्रांश्चात्मापजीविनः । एकैकं कायकर्म मासि मासि महीपतिः ॥१३॥ राजा अपने राज्य में व्यापार वाले से भी कुछ वार्षिक थोडा सा कर दिलावे ॥१३७॥ लोहार बढ़ई आदि और दासों से राजा