पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३६९

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३६६ मनुस्मृति भाषानुवाद महीने में एक र काम (राजकर के बदले) करावे ॥१३८।। नोच्छिन्यादात्मना मूलं परेषां चातितृष्णगा । उच्छिन्दन्यात्मनामूलमात्मानं तांश्च पीडयेत् ॥१३॥ तीक्ष्णश्चैत्र मृदुश्वस्यात्कार्य वीक्ष्य महीपतिः । तीच्णश्चैत्र मृदुश्चैव राजा भवति संमः ॥१४०॥ (प्रजा के स्नेह से अपना कर न लेना) अपना मूलच्छेद और लालच से (बहुत कर ग्रहण करना) औरों का मूलच्छेद (है)। ये दोनो काम राजा न करे, अपना मूलच्छेद करता हुआ (कोष के क्षीण होनेमे) आप क्लेश को प्राप्त होगा और (अधिक कर प्रहए करने से) प्रजा क्लेश को प्राप्त होगी ॥१३९|| राजा. काम को देख कर न्यायानुसार तीक्ष्ण और नम हो जाया करे, क्योकि इस प्रकार का राजा सब के सम्मत होता है ॥१४॥ अमात्यमु व्यं धर्मज्ञ प्राज्ञ दान कागतम् । स्थापयेदासने तस्मिन खिन्नः कार्येक्षणे नथाम् ॥१४॥ एवं सर्व विधावेदमिति कर्तव्यमात्मनः । युक्तश्चैत्राप्रमत्तश्च परिरक्षेदिमाः प्रजाः ॥१४२॥ आप मनुष्यों के कामोंके देखने मे खिन्न (गादिवश मुकदमा को न देख सकता) हो तो मुख्य मन्त्री जो धर्म का जानने वाला बुद्धिमान, जितेन्द्रिय और कुजीन हो, उस की उस जगह मनुष्यो के काम देखने पर योजना करे ॥१४१॥ अपने सम्पूर्ण कत्त न्य को इस प्रकार पूरा करके प्रमादरहित और युक्त राजा इन प्रजाओं की सब से रक्षा करे ।।१४।। विक्रोशन्त्यो यस्य राष्ट्राद्धियन्ते दस्युमिः प्रजाः । & t