पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३७१

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३६८ मनुस्मृति मापानुवाद, जिस के मन्त्र का मिलकर अन्य मनुष्य नहीं जान पाते वह कोश- हीन राजा भी सम्पूर्ण पृथ्वी को भोगता है ॥१४॥ जडसूकान्धवधिरा स्तिर्यग्यानान्वयोतिगान् । स्त्रीम्लेच्छब्याधितव्यङ्गान्मन्त्रकाले पसारयेत् ॥१५०|| भिन्दन्त्यनमता मन्त्रं तिर्यग्योनास्तथैव च । स्त्रियश्चैव विशेषेण तस्मात्राहतो भवेत् ॥१४८॥ जड़, मूक, अन्ध, बधिर, पक्षी आदि वृद्ध, स्त्री म्लेच्छ, रोगी और विकृत अन वाले को मन्त्र के समय में वहां से) हदा देवे ॥१४९।। पूर्वोक्त जड़ादि अपमान को प्राप्त हुये मन्त्रभेद कर देते ऐसे ही शुक सारिकादि पक्षी और विशेष करके स्त्री मन्त्रभेदक इसलिये उनका (अपमान न करें) श्रादर पूर्वक हटा दे ॥१५॥ मध्यदिनेषरात्रे वा विश्रान्तो विगतक्लमः । चिन्तयेद्धर्मकामार्थान साधं तैरेक एव वा ॥१५॥ परस्परविरुद्धानां तेषां च समुपार्जनम् । कन्यानां सम्प्रदानंच मागणांच रक्षणम् ॥१५॥ दोपहर दिन में वा अर्धरात्रि में चित्त के खेद और शरीर के क्लेश से रहित हुवा मन्त्रियों के साथ वा अकेला धर्म अर्थ काम का चिन्तन करे ॥१५॥ यदि धर्म अर्थ काम परस्पर विरुद्ध हो तो उन के विरोध दोष के परिवार द्वारा उमार्जन और कन्याओ के दान और पुत्रो के रक्षण शिक्षणादि (का चिन्तन करे) ॥१५२|| दतसंप्रपणं चैव कार्यशेष नोव च । अन्तःपुरप्रचारंच प्रणिधीनां च चेष्टितम् ॥१५३॥