पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३७२

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सतमाऽध्याय ३६९ कृत्स्नं चाष्टविध कर्म पञ्चवर्ग च तच्चतः । अनुरागापरागौ च प्रचारं मण्डलस्य च ॥१५४|| परराज्य में इस भजने और शेप कामो तथा अन्तः पुर अर्थात महल में जो प्रचार हो रहा है उसका और प्रतिनिधियों के काम का विचार करें)।१५। सम्पूर्ण अष्टविधान और पञ्चपर्म का तत्त्व से विचार करे और अमात्यादि के अनुराग विराग को जाने और मण्डल के प्रचार (कौन लडना चाहता है और कौन सुलह "काना चाहता है) को विचारे । (यहाँ ८ वा ५ प्रकार के कामो की गिनती नहीं लिखी है इसलिये हम मेधातिथि के भाग्य से उद्धृत करक उरान. स्मृतिक श्लाकाको सार्थ लिखना उचित समझते हैं - आदाने-च विसग च तथा प्रोपनिषयोः । पञ्चमे चार्थवचने व्यवहारस्य चेक्षणे ।। दण्डवाशुद्धयोस्तथा युक्तस्तेनाष्टमतिकानृपः। मेंट वा कर लेना, वतन वा पारितोपिकादि देना, दुष्यों को त्यागना-पृथक् करना अधिकारियों के मतमद का स्वीकार न करना (वा विधि और निषेध) बुरी वृत्तियों को नहीं करना (अपील में रह करना) व्यवहार पर मष्टि अपराधियों को दण्ड और पराजितो की मल के प्रायश्चित करना, ये पाठ हैं | और दूसरे प्रकार से भी मेधातिथि ने गणना की है। यथा-व्या गर, पुल चांवना किले वनवाना उनकी स्वच्छता का ध्यान हाथी पकड़ना स्थानि खोदना, जङ्गलो को बसाना और वन कटवाना || अन्य भी कई प्रकार से माज्यकारों ने गणना की है। अब पांच की गणना सुनिये कोई ती मानते हैं कि १ कौरम्भापाय २ पुरुष संपत्ति ३ हानि का प्रतिकार ४ देश कालका विभाग ५ कार्यसिद्धि ।