पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३७४

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सममाऽध्याय ६७१ + (प्रकृति) हैं । (पूर्वोक्त मूल प्रकृति चार और शाखा प्रकृति पाठ, एस) माह की पाच र प्रत्येक की प्रकृति है (ये मिलकर साठ होती है और य मूल बारह मिला कर) संक्षेप से बहत्तर होती हैं ॥१५४ाशा और शव के संवियों को समीप ही जान । उसके अनन्तर मित्र का जान । पश्चान् उदासीन को अथात् इन पर उत्तयत्तर -ष्टि रक्खे ॥१५॥ वान्सबानाममंदध्यात्मामादिभिरुपक्रनः व्यस्तश्चैव समस्तश्च पौरुण नयेन च ॥१५६ । सान्धं च विग्रहं चैव यानमासनमेव च । द्वधीमा संश्रयं च पगुणांचिन्तयेत्सदा ।।१६०।। उन सब को सामादि उपायों से वश मे करे। एक २ उपाय से या सब से और पुरुषार्थ तथा नीति से (वश मे करे) ॥१५९॥ १ मेल २ लड़ाई ३शा पर चढ जाना ४ उसकी राह देखना ५ अपने दो भाग कर लेना और ६ दूसरे का आश्रय कर लेना इन 'छ. गुणों को मर्वता विचारे ॥१६॥ प्रासनं चैत्र यानं च सन्धि विग्रहमेव च । कार्य वीक्ष्य प्रयुञ्जीत दूध संश्रयमेव च ॥१६१॥ मन्धिं तु विविध विद्याद्राजाविग्रहमेव च । उमे यानासने चैत्र द्विविधः संश्रयः स्मृतः ॥१६२।। आसन यान, सन्धि, विग्रह, द्वैध और आश्रय इन गुणों को अवसर देखकर जव जैसा उचित हो तब वैमा करें ।।१६।। सन्धि के प्रकार की जाने और विग्रह भी दो प्रकार का। यान, श्रासन और संभय मी दो दो प्रकार के हैं ॥१६।।