पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३७८

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Fममाऽध्याय २५५ परन्तु यदि आनय किये जाने से भी देोप दग्वे (अर्थान् उसमें भी कुछ धाका समझे ) बब उसके साथ भी निशङ्क होकर युद्ध करे ||९७६|| सर्वापायैस्तथा कुर्यानीतिज्ञः पृथिवीपतिः । यथास्याम्बधिका नम्युमित्रोदासीनशत्रवः ॥१७७।। आयति सर्यकायाखा तदात्वं च विचारयेत् । प्रतीतानां च सर्वेषा गुणदापा च तचनः ॥१७८|| नाति का जानन वाला सामादि सब उपायों से ऐसा करे कि जिस म उसके मित्र उदासीन और शव बहुत न हावें ॥१७७|| सम्पूसे भावी गुण दाप और वर्तमान समय के कन्तव्य और सब व्यतीत हुवा को भी विचारे कि ठीक २ किस २ में क्या २ गुण दोप निकले ॥१७॥ आयत्यां गुणदेोपजस्तदात्वे क्षिनिश्चयः । अतीते कार्य शेषज्ञः शत्रुभिर्नाभिभूयते ॥१७६।। यथैनं नामिसंदध्युमित्रोदासीन शत्रवः । तथा सर्व संविध्यादेप सामासिका नयः ॥१८॥ जो होने वाले का ग के गोर को जानने वाला (अच्छे का प्रारम्भ करता है और बुरे का छोड़ देता है) और उस समय के गुण दापों को शीघ्र निश्चय करके काम करता है और हुवे कायों के शेष कर्तव्य का जानने वाला है, वह शत्रु से नहीं ढवता ||१७५जिस में- मित्र उदासीन और शत्र अपने का दबाने न पायें वैसे स विवान करे। वह संक्षेप से नीति है ।।१८०।।