पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३८०

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खप्तमाऽध्याय (जल स्थल, आकाश, वा ऊंचे, नीचे सम) तीन प्रकार के भागों का शेवन करके और छ. प्रकार का अपना वल लेकर संग्राम कल्प की विधि से धीरे २ शत्रु के नगर को यात्रा करे। (६ प्रकार का पल यह है-१ मार्ग रोकने वाले वृक्षाडि कटवाना, २ गढ़ा को बराबर करना, ३ नदी वा मोज्ञों के पुल वाचना वा नौकादि रखना ४ मा रोकने वालो को नष्ट करना. ५ जिन से शत्रु का सहारा मिलना सम्भव हो उन्हें अपना बनाना, ६ रसद और सैनादि तैयार रखना अथवा १ हस्यारोही २ अश्वारोही ३ रथारोही ४ पैदल सेना, ५ कोश और ६ नौकर चाकर) ॥१८॥ जो मित्र छिपकर शत्रु से मिला हुवा हो और जो पहिले छडाया फिर आया हुवा (नौकर) हो, इनसे सचेत रहे क्योकि ये (धानो शत्रुता को तो) बड़ा दुःख दे सकते हैं ।।१८६॥ दएडव्यूहेन तन्मार्ग यायाच शकटेन था । वराहमकराम्यां वा सूच्या वा गरुडेन वा ॥१८७॥ यतच भयमाशङ्कतो विस्तारयेद् बलम् । पद्मन चैव म्यूहेन निविशेत सदा स्वयम् ॥१८ (दण्ड के आकर व्यूह की रचना दण्ड व्यूह कहलाती है । ऐसे ही शकटादि व्यूह भी जानिये । उसमे आगे सेना के अफसर बीच में राजा. पीछे सेनापवि दानो वगल हाथी उनकं पास घोडे और उनके पास पास पैदल । इस प्रकार लम्बी रचना दण्डव्यूह कहाती है। ऐसे) दण्डव्यूह से मार्ग चले अथवा शकट वराह मकर सूची और गरुड़ के तुल्य आकृति वाले व्यूह से (जहां जैसा उचित समझे वहां वैसे यात्रा करे) ॥१८४ा जिस ओर डर समझे उस ओर सेना बढ़ाव। सर्वदा आप (कमलाकार) पद्मव्यूह मे रहे ॥१८८