पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३८१

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मनुस्मृति भाषानुवाद सेनापतिबलाध्यक्षौ सदिक्षु निवेशयेत् । यतश्च भयमाशङ्कर प्राची नां कल्पवेदिशम् ॥१६॥ गुन्मांश्च स्थापयेदाप्तान कृत संज्ञान्समन्ततः । स्थाने युद्धेच कुशलानभीसनविकारिणः ॥१६॥ सेनापति और सेनानायकों को सब दिशाओं में नियुक्त करे और जिस दिशा मे भय समझे उसे पहली (पूर्व) दिशा कल्पना करे॥१८९॥ सेना के स्तम्भ के समान दृढ प्राप्त पुरुषों को भिन्न भिन्न संज्ञा घर कर सब ओर स्थापित करे जो स्थान और युद्ध में प्रवीण तथा निर्भय हो और विगइने वाले न हो॥१९॥ संहतान्योधयेदल्पान्कामं विस्तारयेद् बहून् । सूच्या बजेण चैौतान्व्यूहेन न्यूझ योधयेत् ॥११॥ स्पन्दनाश्नी समे युधेदनूपे नौद्विपस्तथा । वृक्षगुल्मावृते चारैरसिचायुधैः स्थले ॥१९२॥ अल्प योद्धा हो तो उनको इकट्ठा करके युद्ध करावे और बहुदो को चाहे फैलाकर लड़ाये। पूर्वोक्त सूच्याकार वा वजाकार व्यूह से रचना करके इनसे युद्ध करावे ॥१९१॥ बराबर की पृथिवी पर रथो और अश्यों से युद्ध करे पानी की जगह हाथी और नावों से वृक्ष लताओ से घिरी पृथिवी पर धनुश्री और कण्टकादि रहित स्थल में खङ्गचर्मादि आयुधो से (लड़े) ॥१९२|| कुरुक्षेत्रांच मत्स्यांश्च पञ्चालान्शूरसेनजान् । दीर्घालघूश्चैव नरानग्रानीकेषु योजयेत् ॥१६३॥ प्रहर्षयेद् वा न्यूह्य तांश्च सम्यक् परीक्षयेत् ।