पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३८२

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ससमाऽभ्याय ३७९ पाश्चत्र विजानीयादरीन्याध्यतामपि ॥१६४|| कुरुक्षेत्र निवासी और मत्स्यदेश के निवासी तथा पाञ्चाल और शरसेन देश निवामी नाटे और ऊँचे मनुष्यों को सेना के भाग करे (क्योकि ये रणकर्कश वीर होते हैं ॥१९॥ न्यूह की रचना करके धनको उत्साहित करे और उनकीपरीक्षा करे। शाओं से लड़ते हुने भी उनकी चेष्टाओंको जाने (कि कैसे लड़ते है।१९४॥ उपाध्यारिमासीत राष्ट्र चापापपीडयेत् । पश्चास्य सततं यवसानोदकेन्धनम् ॥१६॥ • मिन्याच्चैव तडागानि प्राकारसरिखास्तया । समवस्कन्दयेच्चन रात्री वित्रासवेत्तथा ॥१६६|| शवों को घेर कर देश की प्रच्छिन्न करें और निरन्तर घास अन्न जल और इन्धन को नष्ट करे ।।१५।। तालाब और शहर- पनाइ और घरे भी वोड़ डाले और शर का निर्बल करे और रात्रि में कष्ट देवे ॥१९॥ उपजप्यानुफ्जपेद् बुध्येतव च वकृतम् । युक्त व देवे युध्येत जयाप्सुरपेतभीः ॥१६॥ साम्ना दानन मेदेन समस्तैस्थया पृथक् । गजेतुं प्रयतेतारान युद्धेन कदाचन ॥१६ | शत्र के मन्त्री श्रादि को तोड़ कर भेद लेवे। और उसके इसी काम का भेद जाने । यदि देव सहायक हो तो निडर होकर जय की इच्छा करने वाला ऐमा युद्ध करे ॥१९७। (होसके तो) साम, वाम, मेड इन में से एक २ से वा तीनों से शत्रु को जय करने का प्रयत्न करे. (पहिने) युद्ध ते कमी नहीं ॥१९८॥