पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मनुस्मृति मापानुवार आपत्ति (की निवृत्ति) के लिये धन की रक्षा करे और धनों स्त्रियों की रक्षा करे और अपने को स्त्री और धनोसे भी निरन्तर रक्षित करे ।।२१।। बहुत सी आपत्ति एक साथ उत्पन्न होती देखें तो (उनके हटाने को) बुद्धिमान (सामादि) सव ही उपाय अलग २ या मिलकर करें ।।२१४॥ उपेतारमुपेयं च सर्वोपायांश्च कृत्स्नशः । एतत्पर्य समाश्रित्य प्रयतेतार्थसिद्धये ॥२१॥ एवं सर्वामिद राजा सहसमन्य मन्त्रिभिः । व्यायम्याप्त्यमध्यान्हे भाक्तुमन्तःपुरं विशेत् ॥२१६। उपाय करने वाले और उपाय के योग्य साध्य और उपाय ! तीनो का ठीक र पाश्रय करके अर्थमिद्धि के लिये प्रयत्न व ।।२१५।। उक्त प्रकार से सम्पूर्ण वृत्त को राजा मन्त्रियों के सा विचार कर म्नान तथा (शस्त्र के अभ्यास द्वारा) व्यायम (कसर करके मध्याह मे माजन को अन्तःपुर में प्रवेश करे ।२१|| नत्रात्मभूतः काल रहा: परिचारकः । सुपरीक्षितमन्नायमद्यान्मन्त्रैविपापहै: ॥२१७॥ विषघ्नै गदैश्वास्य सर्वद्रव्याणि योजयेत् । विषघ्नानि च रत्नानि नियती धारयेत्सदा ॥२१८|| उस अन्त पुर में भोजन काल के भेद जानने वाले, दूद शत्रुपक्ष में न मिल जाने योग्य अपने सेवको के द्वारा सिद्ध कर हुवा और (चकोरादि पक्षियों से) परीक्षित और विप के दूर के वाले मन्त्रो (गुप्त विचारो) से शुद्ध हुवे अन्न का भोजन करे। राजा के सव भाग्य द्रव्यो मे विय का नाश करने वाली दवा .