पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३८९

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मनुस्मृति भाषानुवाद गत्या कक्षान्तरं त्वन्यत्समनुज्ञाप्य तं जनम् । अविशेदोजनार्थ च स्त्रीवृतोऽन्तपुरं पुनः ॥२२४॥ फिर सन्ध्योपासन करके निवासगृह के एकान्त में शस्त्र धारण किये हुवे, गुप्त समाचार कहन वाल दूता और प्रतिनिधियों के समाचार और कामो को सुन ॥२९शा अन्य कमर में उनका विसर्जन कर अन्तःपुर की धिया क साथ फिर से भाजन के लिये अन्त पुर में जावे ॥२२॥ तत्र मुक्तूवा पुनः किचित्त योपैः प्रहपितः । संविशेतु यथाकालमुनिष्ठच गतक्लमः ॥२२॥ एविधानमातिष्ठ दरोगा पृथिवीपतिः। अस्वस्थ समेतच मृत्येषु विनियोजयेत् ॥२२६।। वहां मेजिन करके कि थोडे गाने बजाने से प्रसन्न किया हुवा उचित काल मे शयन करे। पुनः (४ घड़ी के तड़के) विश्रान्त होकर उठे ।।२२५॥ रोगरहित राजा यह सब इस प्रकार से (आप ही) करे और बदि अस्वस्थ होतो मृत्योसे यइसब कार्यकरावा२२६॥ इति मानचे धर्मशास्त्रे (भृगुणोक्तायां संहितायां ) सप्तमोऽध्यायः ॥७॥ इति श्री तुलसीरामस्वामिविरचिते मनुस्मृतिभाषानुवादे सप्तमोऽध्यायः ॥७॥