पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३९१

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३८८ मनुस्मृति भाषानुवाद कोई किसीकी हिंसाकरे वा देने योग्य न देखें ये दो [फौजदारी: व दीवानी विवाद के मुख्य स्थान हैं । फिर अष्टादश ५८ प्रकार का विवाद है)। तेपामाधामणादानं निक्षेप स्वामिविक्रयः । संभूय च समुत्थानं दचस्यानपकर्म च ॥er चेतनस्यैव चादानं संविदा व्यतिक्रमः । ऋयविक्रयानशयोविवादः स्वामिपालयोः ॥५॥ सीमाविवादवर्मश्च पारुष्ये दण्डवाचिके । स्तेयं च साहसं चैत्र स्त्रीसंग्रहणमेव च । ६॥ स्त्री'धर्मो विभागच द्यूतमार्बर एव च । पदान्यष्टादशैतानि व्यवहारस्थितानिह ॥७॥ एषु स्थानेषु भूमि विवादं चरतां नृणाम् । धर्म शाश्वतमाश्रित्य कुर्यात्कार्य विनिर्णयम् ।।८।। उनमें पहिला १ ऋणादान है कि ऋण लेकर न देना वा विनो दिये मांगना, २ निक्षेप-धरोहर. ३ विना स्वामी होने के बेचना, ४ सामे का व्यापार ५ दान दिये को फिर लेलेना ॥४॥ नौकरी का न देना, ७ इकरार नाम के विरुद्ध चलना ८ खरीदने बेचने का झगड़ा ९ पशु स्वामी और पशुपाल का झगड़ा ॥५॥ १० सरहदकी लड़ाई ११ कड़ी बात कहना १२ मारपीट १३ चोरी १४ जबरदस्ती धनादि का हरण करना १५ परस्त्री का लेलेना ||६|| १६ स्त्री और पुरुषके धर्म की व्यवस्था १७ घन का भाग १८ जुवा और जानवरो की लड़ाई में हार जीत का दाव लगाना । संसार में ये अठारह व्यवहार प्रवृत्तिके स्थान है ॥७॥ (इन ऋणा-