पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/३९२

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अमाऽध्यान ऽनानादि) व्यवहारों में बहुत मागड़ने वाले पुरुरों का सनातनवरे के अनुसार कार्यनिर्णय करे । यदा स्वयं न कुर्यात् नपतिः कार्यदर्शनम् । तढा नियुज्ज्याद्विद्वांस बामणं कार्यहने सोऽस्य कार्याणि संपश्येत्सम्यैरव त्रिभितः । समामेव प्रविश्यानपामासीनः स्थित एव वा ॥१०॥ जब राजा आप (किमी कारण ) कार्य दर्शन न कर मके प्रधान कार्याधिक्यादि में प्रार मा मुकदमां का न दन्छ मकं ) तव विद्वान् (नीतिन) ब्राह्मण का कार्य देखने में नियुक्त करे ।।९।। यह ब्राह्मण तीन सघ पुस्त्रों के ही साध समा में ही प्रवेश करके, एकाय बड़े हुवे बायेठकर राजाकंदमने सब कामां का देखे ॥१०॥ यस्मिन्देशे निपीदन्ति विप्रा बंदविदस्त्रया । राज्ञया धिकृतो विद्धान ब्रह्मणस्तां समांविदुः ॥११॥ धर्मो विद्धस्त्वधर्मेण समां यत्रोपतिष्ठते । शल्पं चास्य न कतन्ति विद्वास्तत्र सभासदः ॥१२॥ जिस देश में वेदों के जानने वाले ३ ब्रामण (राजद्वार में) रहते हैं और राजा के अधिकार का पाया हुवा १ विद्वान् ब्राह्मण रहता है उसका ब्रह्मा की समा जानते हैं ||११|| जिम सभा में अधर्म से धर्म को बींवा जाता है (अस सन्धको क्लेश देने वाले) शल्य (काटे) का जो ममाम नहीं निकालने तब उसी अधर्मरूप कांटे से चे सभासद् विघते हैं (अर्थान् सभासद् लोग मुकामे की पेचीदगी का न निमानें तो पाप भागी होते हैं। एक पुस्तक में यह पाठ भेद है कि "निकनन्ति विद्वांसोऽनसभासद. 'उस पत्र में यह