पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४०१

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मनुस्मृति मापानुवाद राजा और राजपुरुष (काम गर) भी ऋणाऽवानादि का झगड़ा स्वयं उत्पन्न न कराने और यदि कोई पुरुप विवाद को प्रस्तुत (पश) करे तो राजा और राजपुरुष उसकी अता (हनम) न करें। वा रिश्वत लेकर खारिज न कर दे) ॥४॥ जैसे मृग के रुविर पात के मार्ग से खोजता हुवा ब्याच ठिकाने को प्राप्त होता है, वैसे ही राजा अनुमानसे धर्म के पद (मुआमले की असलियत) को प्राप्त होवे ॥४॥ सत्यमर्थ च संपश्वेदात्मानमथ साक्षिणः । देशरूपं च कालं च गवहारविची स्थितः ॥४५॥ सद्धिराचरितं यत्स्याहार्मिकैश्च द्विजातिभिः । तद्देशकुलजातीनामविरुद्ध प्रकल्पयेत् ॥१६॥ व्यवहार (मुभानला. मुघाटमा) के देखने में प्रवृत्त (राजा वा राजपुरूप) सत्य अर्थ (गाहिरण्यादि) तथा प्रापे और साक्षियों तथा दश रूप और काल का देखे (विचारे) || जो धार्मिक सत्सुरुष द्विजातियो से श्राचरण किया हुआ हो और कुल जाति तथा देश के विरुद्ध न हो ऐसा व्यवहार का निर्णय करे ॥४६॥ अधमर्थसिद्धयर्थमुत्तमणेन चोदितः । दापयेनिकस्यार्थमधमाद्विभावितम् ॥४७॥ 3रुपायैरथं स्वं प्राप्नुयादुत्तमर्णिकः । तैस्तैरुपायैः संगृह्य दापयेदधमर्णिकम् ॥४॥ धर्मेण व्यवहारेण छनाचरितेन च । । प्रयुक्तं साधयेदर्थ पञ्चमेन बलेन च ॥४६॥ यः स्वयं साधयेदर्थमुत्तमोऽधमर्णिकात् ।