पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४०५

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४०२ मनुस्मृति मापानुवाद शूद्र वर्ण वाले ये लोग जब कि अर्थी (मुहई) कहे कि मेरे साक्षी हैं तब साक्ष्य के योग्य होते हैं हर कोई नहीं । जब तक कि कुछ आपत्ति न हो। ( यहां ब्राह्मण को गवाही में इस लिये नहीं कहा है कि सांसारिक कार्यों में पड़ने से उस के पारमार्थिक कामां में बाधा न पडे और यदि न्य सानी न मिल सके तो ब्राह्मण माक्षी वैसे तो सर्वोत्तम है. इस लिये आगे बहीति ब्राझणं 'पृच्छेन' कहेगे)||६ आप्ताः सर्वेषु वर्णेषु कार्गः कार्येषु साक्षिणः । सर्वधर्मविदो जुन्या विपरीतांस्तु वर्जयेत् ॥६३|| नोर्थसंबन्धिनोऽनाप्ता न सहाया न वैरिणः । न दृष्टदेापा कतव्या न च्या धार्ता न दूषिताः। ६४। सव वर्णो मे जो यथा कहने वाले और सम्पूर्ण धर्म के जानने वाले हो उन को कामो में साक्षी करना चाहिये और इन से विपरीतो को नहीं ||शा धन के सम्बन्धी, अमत्यवादी, नौकर आदि सहायक. शत्रु दूसरी जगह जानकर मूठी गवाही देने चाले. रोगी और (महापातकादि से) दूपितो को (गवाह) न करे||६४॥ न साक्षी नृपतिः कार्योः नकारुककुशीलवौ । नश्रोत्रियो न लिस्थोनसँगेभ्योविनिर्गतः ॥६५॥ नाध्यधीना न वक्तव्यो न दस्युन विकर्मकृत् । न वृद्धो न शिशु.का नान्त्या न विकलेन्द्रियः॥६६॥ राजा, कारीगर, नट श्रोत्रिय, ब्रह्मचारी और संन्यासी को भी साक्षी न वनावे ।।६५।। परतन्त्र वदनाम दस्यु निपिद्धकर्म करने वाला, वृद्ध, बालक, और १ एक ही और चण्डाल और जिसकी