पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४०६

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अष्टमाऽध्याय इन्द्रिय स्वस्थ न हो उसे (साती) न करे ॥६॥ नार्ता न मत्तो नान्मतो न जुत्तष्णोपपीडितः । न अमाऊन कामा न ऋद्धो नापि तस्करः ॥६७॥ स्त्रीणांसायस्त्रियः कुर्यु विजानां सदृशा द्विज्ञाः । शुदाच सन्तः शूद्राणामन्त्यानामन्त्ययोनयः ॥६॥ दुःखी मद्यादिमत्त, पागल, धा. तृपा से पीड़ित थका, कामपीडित. कोर वाला और चार यि भी साक्षी योग्य नहीं हैं) ॥६॥ स्त्रियों का साक्ष स्त्रियां करें। द्विजों का (माक्ष्य) उन के 'सहश द्विजकरे। सूत्रों का (माय) साजन शुकरें और चण्हाला का (साक्ष्य) चण्डाल करे ।।६८॥ अनुभावी तु यः कश्चित्कुर्यात्माच्यवित्रादिनाम् । अन्तःश्मन्यररणे वा शरीरस्यापि चात्यो ॥६॥ स्त्रियाप्यसंभवे कार्य बालेन स्थविरेण वा । शिष्येण बन्दुमा वापि दान भाोन वा !!७०|| घर के भीतर, वन मे, शरीर के अन्त (खून) मे, इन झाड़ो में जो कोई भी अनुभव करने वाला वही साती किया जा सकता है ।।५।। (मकान के भोवर आदि स्थानों में अपर लिखे साक्ष्य के) न होने पर स्त्री, चालक, वृद्ध, शिष्य, बन्धु और नौकर चाकर भी साक्ष्य करें। बालवृद्धातुराणां च साच्येषु बदनां मृपा । जानीयादस्थिरां पाचमुसिक्तमनसां तथा ।'७१।। साहसेषु च सर्वेषु स्तेयसंग्रहणेषु च ।