पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/४०७

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४०४ मनुस्मृति भापानुवाद । बाग्दण्डयोश्च पारूप्ये न परीक्षेत सामिणः ॥७२॥ वाल, वृद्ध आतुर और चलचित्त लेाग साक्ष्य में झूठ बोलें नो इनकी वाणी को स्थिर न जाने ॥७॥! सम्पूर्ण माहमा (डाका मकान जलाना इत्यादि) में चारी, परन्त्रीसङ्गा, गाली और मारपीट में साक्षियों की परीना न करे (अथान १ से ६८ श्लाक तक जिस प्रकार के साक्षी कहे हैं वैसी ही का नियम नहीं) ||२|| बहुत्न परिगृहीयात्साक्षिद्वधे नराधिपः समेपुतुगुणोस्कृष्टान् गुणिद्वधे द्विजोत्तमान् ।।७३।। समनदर्शनासाच्यं श्रवणाच्चैत्र सिध्यति । तत्र सत्यं ब्र बन्माची धर्मार्थाना न ही मते :७|| परम्पर विरुद्ध साक्षियों में जिस बात को वहुत कहें उनको राजा ग्रहण करे और विरुद्ध कड़ने वाले साक्षी जहां संख्या में समान हो वहां अधिक गुण वानी का और यदि गुण वाजे विरुद्ध कहे तो वहां द्विजाचना (वारणों) का तमाण करे ||७ मामरे देखने से और सुनन से भी सादर सिद्ध होताहै उसमे सच बोलने वाला साक्षी धर्म अर्थ से नहीं हारता ||४|| साक्षी दृष्टश्रुतादन्यहिब्रु बन्चार्यसंसदि । अवाङ्नरममभ्येति प्रत्य स्वर्गाच हीयते ॥७५|| यत्रानिबद्धो-पीक्षेत शृणुयाद्वापि किञ्चन । पृष्ठस्तत्रापि तदव याद्ययादृष्टं यथाश्रुतम् ११७६।। आर्यों की सभा में देखे सुने से विरुद्ध करने वाला साक्षी अधोमुख नरक में जाता है और मरकर भी स्वर्ग से हीन हो जाता है ||५|| निस (मुकदम) में न भी कहा हुआ हो (कि तुम इसमे